मोहम्मद रफी – भारत के महान “गायक रत्न”

मोहम्मद रफी
मोहम्मद रफी

रफी साहब,

जिनका नाम सुनते ही एक संवेदनशील और बहुत ही मधुर आवाज मेहसुस होती है! भारतीय संगीत के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध पार्श्व गायकों में से एक, महान गायक मोहम्मद रफ़ी जी ने अपनी भावपूर्ण आवाज़ और बहुमुखी प्रतिभा से फिल्म जगत पर एक अमिट छाप छोड़ी हैं। आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे है ऐसां रोमँटिक गाना हो, नफरत की लाठी तोडो लालच का खंजर फेंको…. देश प्रेमीयों ऐसा देशभक्ती गीत हो, मधुबन मे मी राधिका नाचे रे ऐसा क्लासिकल गाना हो, रंग और नूर की बारात किसे पेश करू ऐसी गजल हो, सुख मे सब साथी दुख मे ना कोई ऐसा भजन हो, परदा है परदा है ऐसी कव्वाली हो या नजर आती नही मंजिल ऐसा सॅड सॉंग हो मोहम्मद रफी साहब ने हर एक गीत को बडी लगन से और प्रभावी रूप से गाया हैं! तन – मन को आकर्षित कर देने वाले लगभग 25 हजार फिल्मी गीतों के अलावा करीब ढाई हजार गैर फिल्मी गीतों में अपनी बहुआयामी गायकी का लोहा संगीत प्रमियों से मानवाने वाले महान फनकार पद्मश्री मो.मोहम्मद रफी साहब के संगीत जीवन सफर को आओ हम थोडा अधिक समझने की कोशिश करें!


75TH INDIAN REPUBLIC DAY - Prasheek Times

Read More

75TH INDIAN REPUBLIC DAY: A FESTIVE OF UNITY, DIVERSITY, AND FREEDOM

In English | In Hindi



24 दिसंबर, 1924 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के एक गांव कोटला सुल्तान सिंह में एक साधारण घर में रफी जी का जन्म हुआ! उनकी एक साधारण पृष्ठभूमि से संगीत स्टारडम तक की यात्रा उनकी जन्मजात प्रतिभा और समर्पण का प्रमाण है। रफि जी के पिता का नाम हाजी अली मोहम्मद और माताजी का नाम अल्लाहरखी था! वें कुल 6 भाई थे और उन्हे 2 बहने थी! रफि जी उनके मा – बाप के ६ बेटों में से ५ वे बेटे थें! मोहम्मद रफी जी का उपनाम “फीको” था, उन्हे बचपन से ही संगीत का बडा शौक था! जब फिको करीब 6 साल के थे (1930 के दशक के अंत में) तब फिको का परिवार रोजगार के सिलसिले में लाहौर आ गया। वैसे तो इनके परिवार का संगीत से कोई खास सरोकार नहीं था लेकिन फिको को मात्र गीतों से बडी दिलचस्पी थी! उस समय जबमोहम्मद रफी छोटे थे, तब इनके बड़े भाई की नाई की दुकान थी, जहां मोहम्मद रफी का काफी वक्त वहीं दुकान पर ही गुजरता था। सात – आठ साल की उम्र के फिको जब अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गाना गाते हुए गुजरने वाले एक फकीर को सूनते तो उससे प्रेरित होकार वे कूछ दुरी तक उसका पीछा किया करते थे। उस फकीर की आवाज मोहम्मद रफी को बहुत पसन्द आती थी और फिर बाद में वो वैसेही उसकी गाने की नकल भी किया करते थे। इतनाही नहीं छोटे रफी जी की नकल में विशेषता को देखकर लोगों को रफी जी की आवाज भी पसन्द आने लगी और वे उस नाई की दुकान में उनके गाने की प्रशंशा भी करने लगे। उनके पिताजी को तो ये सारी बातें मंजूर नही थी, फिरभी इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति बढता रुझान देख उन्हें लाहौर के ही उस्ताद बरकत अली और उस्ताद वाहिद खां साहब की शिष्यता में संगीत सिखने भेज दिया। जिससे मोहम्मद रफी को उनकी संगीत क्षमताओं को अधिक विकसित करने के लिए अनुकूल वातावरण मिला। जिससे वो इस क्षेत्र में आगे बढतेही चले गये!

मोहम्मद रफी
मोहम्मद रफी


लाहौर में सन 1938 में तत्कालीन संगीत के सुप्रसिद्ध गायक कलाकार श्री कुंदनलाल सहगल (के.एल.सेहगल) के संगीत का एक प्रोग्राम आयोजित किया गया था। वहां उपस्थित श्रोताओं में १३ वर्षीय यह मोहम्मद रफी नाम का लड़का भी मौजूद था। संचालकों ने लोगों का मनोरंजन करने के लिये रफी को ही स्टेज पर ला खड़ा किया। इस किशोर लड़के के गाने से जनता खुशीसे कार्यक्रम का आनंद ले रही थी। इस गाने के दौरान सहगल साहब आ पहुंचे थे। उन्होंने भी रफी को सुना और प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया तथा मुंबई आने को भी कहा! फिर आगे चलकर सहगल साहब के आशीर्वाद के अनुरूप और अपनी साधना के बल पर उत्तरोत्तर सफलता रफी के कदम चुमती रही!

पार्श्व गायन में उनका प्रवेश 1941 में पंजाबी फिल्म “गुल बलोच” से शुरू हुआ, लेकिन हिंदी फिल्म उद्योग में मोहम्मद रफी ने वास्तव में अपनी पहचान बनाई। सफलता 1945 में फिल्म “गांव की गोरी” के गीत “अजी दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी” से मिली। मोहम्मद रफी की भावपूर्ण प्रस्तुति और धुन की बेदाग पकड़ ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, जिससे एक शानदार करियर की शुरुआत हुई।

1950 और 1960 का दशक मोहम्मद रफी के करियर का स्वर्णिम वर्ष था। शंकर जयकिशन, एस.डी. जैसे प्रसिद्ध संगीत निर्देशकों के साथ सहयोग। बर्मन, और आर.डी. बर्मन, उन्होंने विविध शैलियों में फैली कालजयी धुनों की एक श्रृंखला प्रस्तुत की। “मधुबन में राधिका” जैसे शास्त्रीय रत्नों से लेकर “ना तो कारवां की तलाश है” जैसी रूह कंपा देने वाली कव्वाली तक, रफी ने अद्वितीय बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।

अभिनेताओं की विशिष्ट शैलियों को अपनाने की उनकी क्षमता ने उनकी स्थिति को और मजबूत किया। मोहम्मद रफी ने देव आनंद के लिए रोमांटिक गायन से शम्मी कपूर के लिए सशक्त और ऊर्जावान गीतों में सहजता से बदलाव किया। इस अनुकूलन क्षमता ने उन्हें फिल्म निर्माताओं का प्रिय बना दिया और यह सुनिश्चित किया कि उनके गाने कहानी का एक अभिन्न अंग बन जाएं, जिससे ऑन-स्क्रीन अनुभव में वृद्धि हो।

मोहम्मद रफी
मोहम्मद रफी

उनके असाधारण योगदान के सम्मान में, मोहम्मद रफी को उल्लेखनीय छह बार सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। कला और संगीत के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण प्रभाव को स्वीकार करते हुए, भारत सरकार ने उन्हें 1967 में पद्म श्री से सम्मानित किया। विभिन्न शैलियों में रफ़ी की महारत, उनके भावनात्मक गायन के साथ मिलकर, उन्हें एक उत्कृष्ट पार्श्व गायक के रूप में अलग करती है।

भारत की सीमाओं से परे, मोहम्मद रफी के संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंज मिली। उनके गीतों ने न केवल पाकिस्तान में दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया बल्कि मध्य पूर्व और अन्य क्षेत्रों में भी लोकप्रियता हासिल की। “चौदहवीं का चांद हो” और “ये जो मोहब्बत है” जैसे ट्रैक भाषाई बाधाओं को पार कर गए, कालजयी क्लासिक बन गए जो दुनिया भर में भावनाओं को जगाते रहे।

उभरती प्रतिभाओं से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करने के बावजूद, मोहम्मद रफी की प्रासंगिकता कायम रही। समसामयिक संगीत निर्देशकों के साथ उनके सहयोग ने चार्ट-टॉपिंग हिट्स की निरंतर धारा सुनिश्चित की। बदलते संगीत रुझानों के साथ विकसित होने की क्षमता ने रफ़ी की अनुकूलनशीलता को प्रदर्शित किया, जिससे एक सदाबहार आइकन के रूप में उनकी स्थिति मजबूत हुई।

31 जुलाई, 1980 को 55 वर्ष की आयु में मोहम्मद रफी के असामयिक निधन ने संगीत उद्योग में एक ऐसा खालीपन छोड़ दिया जो अपूरणीय है। हालाँकि, उनकी विरासत उनकी व्यापक डिस्कोग्राफी और पार्श्व गायकों की लगातार पीढ़ियों पर उनके द्वारा किए गए प्रभाव के माध्यम से जीवित है। प्रशंसकों और साथी कलाकारों की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की गई, एक उस्ताद के निधन पर शोक व्यक्त किया गया जिसका प्रभाव समय से परे था।


Understanding Insurance

Read More

UNDERSTANDING INSURANCE: HISTORY, DEFINITION, PRINCIPLES, AND NEEDS.

In English | In Hindi


मोहम्मद रफी की स्थायी विरासत को श्रद्धांजलि देने के लिए, उनके नाम पर कई पुरस्कार और सम्मान स्थापित किए गए हैं। 2006 में स्थापित मोहम्मद रफी पुरस्कार, संगीत उद्योग में उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देता है, यह सुनिश्चित करता है कि उनकी स्मृतियाँ जीवित रहें। इस संगीतमय हस्ती के जीवन और करियर को अमर बनाने के लिए कई वृत्तचित्र और जीवनी फिल्में भी बनाई गई हैं।

मोहम्मद रफी का प्रभाव संगीत के क्षेत्र से परे तक फैला हुआ है। उनके गीत एक सांस्कृतिक कसौटी के रूप में काम करते हैं, जो उस समय के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाते हैं। चाहे नए प्यार की खुशियाँ व्यक्त करना हो या अलगाव की उदासी, मोहम्मद रफी की आवाज़ मानवीय भावनाओं के स्पेक्ट्रम को समाहित करती है।

मोहम्मद रफी
मोहम्मद रफी

जैसे-जैसे हम हिंदी सिनेमा के सुनहरे युग को दोहराते हैं, रफी के गाने गूंजते रहते हैं, जो अनगिनत यादों को एक ध्वनि पृष्ठभूमि प्रदान करते हैं। प्रत्येक प्रस्तुति, अपने आप में एक उत्कृष्ट कृति, रफ़ी की कलात्मकता की गहराई को रेखांकित करती है। हर सुर में भावनाएं भरने की उनकी क्षमता यह सुनिश्चित करती है कि उनके गाने उम्र और युग की सीमाओं को पार करते हुए कालजयी बने रहें।

मोहम्मद रफ़ी की याद में भारत सरकार द्वारा 2016 मे डाक टिकिट जारी किया तथा उन्हे 1965 को पद्म श्री से सन्मानित किया गया!
सन 1968 – बाबुल की दुआएं लेती जा (फिल्म:नीलकमल), 1977 – क्या हुआ तेरा वादा (फ़िल्म: हम किसी से कम नहीं) इन दो गानो को भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया!

फिल्मफेयर एवॉर्ड (नामांकित व विजित)
1960 – चौदहवीं का चांद हो (फ़िल्म – चौदहवीं का चांद) – विजित
1961 – हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं (फ़िल्म – घराना)
1961 – तेरी प्यारी प्यारी सूरत को (फ़िल्म – ससुराल) – विजित
1962 – ऐ गुलबदन (फ़िल्म – प्रोफ़ेसर)
1963 – मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम (फ़िल्म – मेरे महबूब)
1964 – चाहूंगा में तुझे (फ़िल्म – दोस्ती) – विजित
1965 -छू लेने दो नाजुक होठों को (फ़िल्म – काजल)
1966 – बहारों फूल बरसाओ (फ़िल्म – सूरज) – विजित
1968 – मैं गाऊं तुम सो जाोओ (फ़िल्म – ब्रह्मचारी)
1968 – बाबुल की दुआएं लेती जा (फ़िल्म – नीलकमल)
1968 – दिल के झरोखे में (फ़िल्म – ब्रह्मचारी) – विजित
1969 – बड़ी मुश्किल है (फ़िल्म – जीने की राह)
1970 – खिलौना जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो (फ़िल्म -खिलौना)
1973 – हमको तो जान से प्यारी है (फ़िल्म – नैना)
1974 – अच्छा ही हुआ दिल टूट गया (फ़िल्म – मां बहन और बीवी)
1977 – परदा है परदाParda Hai Parda (फ़िल्म – अमर अकबर एंथनी)
1977 – क्या हुआ तेरा वादा (फ़िल्म – हम किसी से कम नहीं) –विजित
1978 – आदमी मुसाफ़िर है (फ़िल्म – अपनापन)
1979 – चलो रे डोली उठाओ कहार (फ़िल्म – जानी दुश्मन)
1979 – मेरे दोस्त किस्सा ये (फिल्म – दोस्ताना)
1980 – दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-ज़िगर (फिल्म – कर्ज)
1980 – मैने पूछाी चांद से (फ़िल्म – अब्दुल्ला)

निष्कर्षतः मोहम्मद रफ़ी का जीवन और करियर कलात्मक उत्कृष्टता का प्रतीक है। साधारण शुरुआत से लेकर वैश्विक प्रशंसा तक, उनकी यात्रा संगीत की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है। उन्होंने जो विरासत छोड़ी वह महत्वाकांक्षी संगीतकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत और कालातीत धुनों के पारखी लोगों के लिए खजाना है। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़, जोश और भावना से भरी हुई, युगों तक गूंजती रहती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वह भारतीय पार्श्व गायन के क्षेत्र में एक शाश्वत उस्ताद बने रहेंगे।

Mohammad Rafi’s Youtube Song Channel : CLICK ME

पढ़ने का इसी तरह आनंद लें!

(Admin – Prasheek Times)

मोहम्मद रफी
मोहम्मद रफी

RECENT POSTS:

Leave a Comment